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अथ द्वितीयः स्त्रीममत्व-मोचनाधिकारः
मता के रहस्य को समझ लेने के पश्चात् उसके प्राप्त करने के साधन की ओर स्व. भाविकतया ध्यान आकर्षण होजाता है।
प्रथम साधन मोह-ममत्व का त्याग करना है। जनस्वभाव के अवलोकन करनेवाले को अनुभव हुआ है कि अनेक प्रकार के ममत्व में भी स्त्री का मोह तथा मेरापन विशेष बलवान होता है, अतः यहाँ सब से प्रथम उसीपर व्याख्या की जाती है। दूसरे, तीसरे, चोथे, पांचवें अधिकार का भी परस्पर सम्बन्ध है।
पुरुष की गर्दन में बंधी हुई शिला. मुह्यसि प्रणयचारुगिरासु,
प्रीतितः प्रणयिनीष कृति स्वर्म। किं न वेरिस पततां भववाछौं,
ता नृणां खल्लु शिला गलबद्धाः ॥१॥
ॐ कृतिन् किमिति पाठान्तरः क्वचिद् दृश्यते ।