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________________ १०३ - "जिन स्नेहियों को तूं भवदुःख से बचाने में अशक्त है और जो तुझे बचाने में असमर्थ है उनपर झुठा मोह रख कर हे मूढ़ भात्मन् ! तूं पग पग पर क्यों शोक का अनुभव करता है ?" ॥ ३३॥ उपजाति. भावार्थ:-जिसके यहां हररोज वस्त्र, अलंकार और भोजनादिक की पेटियें उतरती थी वैसे शालिभद्र को भी जब मालूम हुआ कि उसके शिरपर अब भी और श्रेणिकनामक राजा राज्य करता है तो संसार से वैराग्य प्राप्त कर हररोज एक एक स्त्रीका त्याग करने लगा । उसको भान होगया कि यहाँ जो सुख जान पड़ता है वह झूठा है, वास्तविक सुख यह नहीं है अतः ऐसी स्थिति प्राप्त करना चाहिये कि जहाँ अपने पर किसी की सत्ता न रहे । जिसको श्रेणिक राजा की गोदी में बैठने के परिश्रम मात्र से भी वैराग्य होगया और जो सचेत होकर चारित्र के विषम मार्ग पर चलने का विचार करता है यह बात बहुत ममन करने योग्य है । उससे भी विशेष सचेत होनेवाले धनाने स्नान करते हुए जब अपनी स्त्री (शालिभद्र की बहिन ). सुभद्रा के नेत्र में से उष्ण अश्रु निकल कर उसके शरीरपर पड़ते हुए देखा तो उसने उसके शोक का कारण पूछा और जब सुभद्राने शालिभद्र के हररोज एक एक स्त्रीत्याग करने की घटना का वर्णन किया और कहाँ कि ऐसा करते हुए उसको आज सत्तर दिन हो गये है तो धन्ना हँस पड़ा और बोला कि "संसार असार है ऐसा जानने के पश्चात् यदि त्रियों का त्याग किया तो एक एक का क्यों किया ? छोड़ना तो सब एक साथ छोड़ देना चाहिये।" इसपर आश्चर्य प्रगट करते हुए सुभद्राने यह मर्मयुक्त वाक्य कहा कि " हे स्वामी ! कहना बहुत सरल है । दुनियाँ के कामों पर
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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