________________
हों और फिर तूं स्तुति की इच्छा रखता हो तो फिर भी माना जा सकता है। परन्तु इनमें से तेरे में एक भी नहीं, फिर किस पर तूं वर्णन कराना चाहता है ? लेकिन हे भाई! तूंने कौनसा बड़ा अद्भुत कार्य किया कि जिससे तूं ऊंची नजर करके अभिमानी हो जाता है ? जिन्होंने वेश्या के घर में बारह वर्ष रह पर अनेक विषयसुख भोगे, उसी वेश्या के घर में, उसी वेश्या की प्रार्थना करने पर भी चार महिने तक अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन करनेवाले भी स्थूलिभद्र महाराज जैसा अथवा छ खण्ड जीतनेवाले पक्रवर्ती के समान किसी महान कार्य करने के पश्चात् यदि तूं अभिमान करता हो तो कुछ वास्तविक भी है, परन्तु तूं तो व्यर्थ निष्काम अकड़ अकड़ कर चलता है, जिसका कारण- तूं विचार कर के मुझ को समझा । हे भाई ! तूंने घोर तपस्या, देशविरति, सर्वविरति, चैत्यप्रतिष्ठा, तीर्थयात्रा, संघभक्ति, सुपात्रदान धादि कौन कौन से महान कार्य कर डाले हैं कि जिससे तेरा नरक में जाने का भय दूर हो गया है ? जिसने इस जीवन में किसी महान कार्य को कर लिया हो उस को तो बहुधा नरक में नहीं जाना पड़ता और उसीका जीवन सफल होता है, परन्तु तेरा तो अभी नरक की गोदी में जाना सम्भव ही है, और है भव्य ! तूं इस प्रकार चिंता रहित होकर फिरता रहता है जिसका हमको तो बड़ा भाश्चर्य होता है, कारण कि जिसके शिर पर शत्रु खड़ा हो वह भला भय रहित होकर किस प्रकार फिरे ? और यदि फिरता है तो दुर्दशा को प्राप्त होता है । अपितु तेरे शिर पर तो यम के समान अप्रतिहत शासनवाला शत्रु भीषण गर्जना कर रहा है फिर भी तूं निःसंकोच कार्य करता रहता है तो ज्या तूंने मेरे शत्रु को जीत लिया है ? तूं ऐसा विचार क्यों नहीं करता है ?