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... ॥ ॐ अहम् नमः ॥ जिनागमरहस्यवेदी सुविहित आचार्यश्री विजयहर्षवरीशसद्गुरुभ्यो नमः
युगप्रधान प्राचार्यश्री मुनिसुन्दरसूरीश्वरविरचित श्री अध्यात्मकल्पद्रुमानिधानो
ग्रन्थः (हिन्दी भाषानुवादः) अथायं श्रीमान् शांतनामा रसाधिराजः सकलागमादिसुशास्त्रार्णवोपनिषद्भुतः सुधारसायमान ऐहिकामुष्मिकानंतानंदसंदोहसाधनतया पारमार्थिकोपदेश्यतया सर्वरससारभूतत्वाच्च शांतरसभावनाध्यात्मकल्पद्रुमाभिधामग्रंथननिपुणेन पद्यसंदर्भण भाव्यते ॥
स र्व आगम आदि सुशास्त्र समुद्र के साररूप अमृतरस के
समान रसाधिराज शान्तरस का, जो इस लोक एवं परलोक सम्बन्धी अनन्त आनंद समूह की प्राप्ति का
साधन, पारमार्थिक उपदेश देने योग्य और सर्व रसों का साररूप है, इस शान्तरस की भावनावाले अध्यात्मकल्पद्रम नामक प्रकरण में, उसके योग्य पद्य में वर्णन किया जाता है।
शान्तरस एक उत्कृष्ट रस है। जिसके अंग-प्रत्यंग में यह रस रम रहा हो उसकी आत्मिक उन्नति का ठीक ठीक चित्र खिचना अति कठिन है। सर्व सांसारिक उपाधियों से मुक्त