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उक्तस्थिति दर्शनका परिणाम सम्पूर्णद्वारका उपसंहार
. नवमश्चित्तदमनाधिकारः मन धीवरका विश्वास न करना मन मित्रको अनुकूल होने निमित्त प्रार्थना मनपर अंकुशका सरल उपदेश संसारभ्रमणका हेतु-मन मनोनिग्रह और यमनियम मनोनिप्रहरहित दानादि धर्मोंकी निरर्थकता मन सिद्ध किया उसने सब कुछ सिद्ध किया मनके वशीभूत हुआ कि भटका परवश मनवालको तीन शत्रुओंका भय मर तरफ उक्ति परक्श मनवालेका भविष्य मनोनिग्रहरहित तप, जप आदि धर्म मनका पुण्य तथा पापके साथ सम्बन्ध विद्वान् भी मनोनिग्रह बिना नरकगामी होते हैं मनोनिग्रहसे मोक्ष मनोनिग्रहके कुछ उपाय मनोनिग्रहमें भावनाओंका माहात्म्य
दशवाँ वैराग्योपदेशाधिकारः मृत्युका दौर, उसपर जय और उसपर विचार आत्माकी पुरुषार्थ से सिद्धि लोकरंजन और आत्मरजन मदत्याग और शुद्ध वासना तुझको प्राप्त हुअा संयोग धर्म करनेकी आवश्यकता, उससे होनेवाला दुःख क्षय अधिकारी होनेका यत्न कर पुण्याभावे पराभव और पुण्यसाधनका करणीयपन पापसे दुःस और उसका त्यागपन . प्राणिपीडा-इनके निवारण करनकी आवश्यकता
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