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________________ वर्णनसे जाना जाता है। आने-जानेवाली जैन कौमको राज्यकर्त्ता ओंकी ओरसे सहायता मिलती थी। ऐसा गुणराज शेठके लिये उसके संघके सम्बन्धमें अहमदशाह बादशाह द्वारा सब प्रकारकी सुविधाओंक किये जानेसे अनुमान होता है। (सर्ग ८ श्लोक ३०) जैसे जैसे उस समय के ग्रन्थोंको अधिक सूक्ष्मतासे विचार करके पढ़ा जाता है वैसे वैसे उस समयके जैनसमाजका बंधारण ___ अच्छी प्रकारसे समझमें आता रहता है। ऐति. सूक्ष्म अवलोकन हासिक पर्यालोचनासे बहुत लाभ होता है। आजकल गच्छके भेद, साधुवर्गका पारस्परिक असंतोषिक सम्बन्ध और श्रावकोंका उस सम्बन्धमे उत्तेजन अत्यन्त खेदास्पद है, मुनिसुन्दरसूरि जैसे असाधारण विचारबल धारण करनेवाले एक दो महात्माओंकी इस समय बहुत अावश्यकता है। वह समय तो धर्मसाधना और शासन अभिवृद्धिके लिये बहुत प्रतिकूल था; आजकल तो यदि योग्य रीतिसे प्रयास करनेमें आवे और उस पर थोडासा अंकुश रहे तो अल्पकालमें ही शासनका डंका बजने लगे ऐसा है। वरना चाल स्थितिसे कई बार उमंगवाले उत्साही प्राणी भी पिछे हठ जाते हैं । लेखक अव्यवस्थित रूपसे जैसे मनमें आता है वैसे हा लिख मारते हैं, बोलनेवाले मन में आता है वैसे हो बोल देते हैं और वर्तन स्वेच्छानुसार करते हैं। कोई भी उनसे प्रश्न करनेवाला नहीं है। शासनकी वास्तविक तन्मयता किसीमें नही रही है ओर यदि किसीमें हो भी तो अशानियोंका जोर होनेसे सब प्रयास व्यर्थ ही जाता है । बारम्बार शासनकी उन्नति करनेके प्रयास होते हैं, परन्तु प्रेम तथा बुद्धिके अभावमें एक दूसरेके कार्योका प्रभाव कम होता जाता है । उपदेशकोंकी स्थिति उस समय उच्च श्रेणीकी थी और वह मानसिक तथा नैतिक विषयमें व्यवहार रूपसे थी। उपदेशकवर्ग सब प्रजापर बड़ा भारी प्रभाव डाल सकते हैं। उपदेशकोंकी शासनकी उन्नति तथा अवनतिका आधार भो स्थिति इसी वर्ग पर रहता है । गच्छाधिपति देशकालके पूर्णतया जानकार थे। और नवीन संयोगोंका सामना करते हुये भी शास्त्रमर्यादामें रह कर योग्य परिवर्तन. करनेमें धर्मके फरमानोंका वास्तविकपन समझाते थे, आजकलके.
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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