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१. तपागच्छपट्टावली-मुर्वावलीके उपरान्त उन्होंने तपागच्छकी एक भिन्न पट्टावली भी बनाई है जो लभ्य है ।
११ शान्तरसरास-रसाधिराज शान्तरसपर यह रास गुजराती भाषामें बनाया गया है। पुरानी गुजराती भाषाका वह एक नमूना हैं ।
अभी विशेष अनुसन्धान करनेसे मालूम हुआ है कि इन प्रन्थोंमेंसे पाक्षिकसित्तरी, अंगुलसित्तरी और वनस्पतिसित्तरी ये तोनों ग्रन्थ मुनि सुन्दरसूरि महाराजके बनाये हुए नहीं हैं परन्तु मुनिचन्द्रसूरिके बनाये हुए हैं। इसके उपरान्त उन्होंने (१२) विद्यगोष्टि (१३) जयानन्द चरित्र ( १४ ) चतुर्विशति जिनस्तोत्र और (१५) सिमन्धर स्तुति बनाई होगी ऐसा कान्फरन्स हेरल्ड ( Conference Herald ) पु० ६ पृष्ठ २११ से जान पड़ता है। इस विषयमें अभी ओर अधिक खोज करनेकी आवश्यकता है। ___ इसप्रकार मुनिसुन्दरसूरि महाराजने अनेकों ग्रन्थ बनाये जिनमेंसे ऊपर लिखित लभ्य हैं। ये ग्रन्थ भी इन विद्वान्
आचार्यकी महत्ता और अद्भुत शक्तिका ध्यान दिलानेके लिये काफी हैं । इन सूरिमहाराजके सम्बन्धमें इधरउधरसे इतना हाल जाना गया है । ऐतिहासिक ग्रन्थोंके अभावमें ऐसी अगत्यको बाबतमें साधारण और इधरउधरकी हकीकत पर ही आधार रक्खा जाता हैं; तिसपर भी एक ग्रन्थकर्ताके लिये इतना भी हकीकत प्राप्त हो जाना जैन इतिहासकारोंके लिये मानप्रद है।
अब मुनिसुन्दरसूरि महाराजके समयमें जैन समाजका बंधारण कैसा था यह हकिकत यदि जान ली माय तो ग्रन्थके सम.
झनेमें अत्यन्त उपयोगी होगी; क्योंकि ग्रन्थ सदैव समाज स्वरूप, चालु जमानेके अनुसार ही होते हैं । इस सम्ब.
न्धमें सब कुछ ग्रन्थमेंसे मिल सके यह अति कठिन है, परन्तु सूरिमहाराजने इस अध्यात्मकल्पद्रमके जो विभाग किये हैं उसपरंसे कितनाक प्रकाश पड़ता है । अध्यात्मिक जीवनके सम्बन्धमें लोगोंकी स्थिति बहुत मंद हो गई हो ऐसा प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि यदि इस विषयसे लोगोंकी रुचि बिलकुल हट गइ होती तो उस विषयका विशेष उपदेश नहीं होला । तिसपर भी इतना तो जान पड़ता है कि अध्यात्मिक विषयपर लोगोंकी