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________________ १४९ १५१ १५४ १५९ १६८ १७१ १७४ १७६ १८१ १८२ धनले सुखके बदल दुःख अधिक है। धर्मके लिये धन एकत्र करना योग्य हैं ? उपार्जित धनका व्यय कैसे करना ? धनसे होनेवाली अनेक प्रकारकी हानियें, और उनका परित्याग कर देनेका उपदेश मात क्षेत्रमें धनव्यय करनेका उपदेश __ पंचमो देहममत्वमोचनाधिकारः शरीरका पापसे पोषण न करना शरीररूपी काराग्रहसे छूटनेका उपदेश शरीर साधनसे करने योग्य कर्त्तव्यकी ओर प्रेरणा देहाश्रितपनसे दुःख, निरालम्बनपनसे सुख जीव और सूरिके बीचमें हुई बातचीत शरीरकी अशुचि, स्वहितग्रहण शरीर घरको किराया और उसका उपयोग शरीरसे होनेवाला भात्महित षष्ठो विषयप्रमादत्यागाधिकारः विषयसेवनसे उत्पन्न होनेवाले सुख तथा दुःख विषय परिणाममें हानिकारक है मोचसुख और संसारसुख दुःस्त्र देनेवालोंका निश्चय उस उपरोक निश्चयपर विचारणा मरणभय-प्रमादत्याग सुखनिमित्त सेवन कराते विषयोमें दुःख तू क्यों विषयों में आसक्त होता है ? विषयप्रमादके त्यागसे सुख सप्तमः कषायत्यागाधिकारः कोषका परिणाम-उसके निग्रह करनेकी आवश्यकता मान-अहंकारत्याग कोष त्याग करनेवाले योगीकी मोक्षप्राप्ति १८९ १९० १९२ १९७ १९९ २०१
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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