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त्रण बालावबोध सहित
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[जि.] धर्मकार्य ऊपरि जेहहूई माया कपट हुइ अनइ जेहहूई मिथ्यात्वनउ ग्रह कदाग्रह हुइ, जे वली कुगुरु भ्रष्ट गुरु ईसु गुरु करइ ते पुरुष पाप पुण्य जिम पुण्य करी मानइ ॥४४॥
[मे.] धर्मकार्यनइ विषइ जेहनइं माया अनइ मिथ्यात्वनउ जेहनइ ‘कदाग्रहु, उत्सूत्र बोलतउ जे शंका नाणइं अनइ कुगुरु रहइं। सुगुरु करी मानइ ते विदुष डाहउ हूंतउ पाप पुण्य करी मानइ ॥४४॥
- [सो.] धर्मकर्त्तव्य वीतरागनी आज्ञाई जि कीजतउं रूडउं । ए वात कहइं। .
[जि.] अथ जिनेन्द्रनी आज्ञाइं कीधउं धर्मकार्य सफल हुइ । इसुं कहइ। किचं पि धम्मकिचं पूआपमुहं जिणिंदआणाए। ... भूअमणुग्गहरहि आणाभंगाओ दुहदायं ॥४५॥
[सो.] किच्चं पि० करिवा योग्य जे धर्मना कर्त्तव्य देवपूजा प्रासाद दानादिक तेहइ वीतरागनी आज्ञाइ जि करतां सफल थाई।
अन्यायनी लक्ष्मीइं करी कहइ रहई गाढउ ऊचाट संताप करी जिहां पंचेन्द्रिय जीवना वध हुइं एह्वा मोटा आरंभ करी स्पर्धा कीर्तिनई
अभिलाखइं जे धर्मकर्त्तव्य कीजइं ते आज्ञारहित कहीइं। एह जि वात कहइ छइ । भूअमणुग्गह० भूत जीव तेहनउ अनुग्रह अनुकंपा जे धर्मइ करतां नही। निर्द्धधसपणउंई जि हुइ। ते वीतरागनी आज्ञाना" भंग भणी दुःखदाई जि थाइ । जिम मिथ्यात्वीनां एंवडां० धर्मकर्तव्य जीवदयारहित दुःखदायीआइ जि थाइं ॥४५॥ ....
१ दुहादाई. जि. दुहदाइं. २ यात्रादिक. ३ रइं. ४ पणउं जि. ५ आन्याना.