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षष्टिशतक प्रकरण
धर्मवंतहूई जिनेन्द्र श्रीवीतरागनी वर प्रधान वाणी' श्रीसिद्धांत धर्ममय वचन तेह जि विश्रामनउं स्थानक हुइ। सिद्धांतना अर्थ विचारतां' जोतां तेहनउं मन महासमाधि लहइ । इसिउ भाव ।।
[जि.] गृहव्यापार घरनउ व्यापार तेहनउ परिश्रम करिवउं 5 तिणि करी खिन्न थाका तेह नर मनुष्यहई वीसामानुं स्थानक हुई। एक
संसारी जीवहूई रमणी स्त्री विश्रामस्थानक हुई। अनेरा कोई भव्य श्रावकहूइं श्रीसर्वज्ञोक्त वरधर्म वीसामास्थानक हुइ ॥२०॥
[मे.] गृहनउ व्यापार व्यवसायादिक तेहनइं श्रमिं जि नर ऊसना छइं, तीह रहइं वीसामानां स्थानक बिह जि । एकनइं रमणी 1०स्त्री वीसामानउं स्थानक । कांइं ते आगलि आपणां काजकाम वात कही समाधि पामइ । ए संसारी जीवनी स्थिति । अनइ अनेरा विवेकी जीवनइ सामायक पडिकमणा जिनपूजा प्रमुख धर्मकार्य तेहइ जि वीसामाना स्थानक हुइ ॥२०॥
[सो.] धर्मवंतनइं अनइ अधर्मवंतनई संसारना काज करतांई 15वडउ विहरउ पडइ छइ । ए वात कहइ छइ ।
[जि.] अजाण अनइं जाण ते बिहुंनइ पेट भरवानउं फल कहइ।
तुल्ले वि उअरभरणे मूढ-अमूढाण पिच्छसु विवागं ।
एगाण नरय-दुक्खं अन्नसिं सासयं सुक्खं ॥२१॥ 20 [सो.] जे जगमाहि मूढ मूर्ख अविवेक अधर्म अनइ जे अमूढ धर्मवंत विवेकिया ते बिहु रहई उदरनउं भरिवलं, आपणा
१ प्रधान जे. २ श्रीसिद्धांतोक्त. ३ विचार. ४ कहै. ५ बीजी प्रतमां नथी.