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प्रष्टिशतक प्रकरण
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भोलड़ सरल स्वभावि हूंतड़ शुद्ध धर्मोपदेश दिइ ते पुरुष चम्मासी चर्मभक्षक कुकुरमइ वदनि मुखि कपूर क्षिपइ पालइ। जिम कुतिरानइ मुहि कपूर घालिउं हूंतउं निःफल थाइ तिम अयोग्यहूई धर्मोपदेस
दीधड़ हूंतउ निःफल । एतावता अयोग्यहूई धर्मोपदेस न देवउ ॥१३॥ 3 [मे.] जे कदाग्रहरूपीउ ग्रह तीणइं करी जे ग्रह्या छल्या छई तेहनइं जे मूढ अजाण धर्मनउ उपदेश दिइं, सूधउं देवगुरुधर्मनउं स्वरूप कहई ते चर्मासी चांबडानउ खाणहार कूतिरउ तेहनइ मुखि कपूर घातई । रूडी वस्त कुथानकि घातई । एतइ कदाग्रहीनई उपदेश न देवा ॥१३॥
० [सो.] सुद्ध प्ररूपकनी रीसइ रूडी। उत्सूत्रभाषकनी क्षमाइ विरुई । ए वात कहइ छइ ।
[जि.] अथ गुरुनउ कोपई भलड़ । केहीएकनी क्षमाई भली नही । इसुं जणावइ छइ ।
मे.] सूधा कहणहारनी रीसइं रूडी, पणि उत्सूत्रभाषीनी इक्षमाइं पाडूइ । ए वात कहइ ।
रोसो वि खमाकोसो सुत्तं भासंतयस्स धन्नस्स । - उस्सुस्तेण खमा वि य दोसमहामोहआवासो ॥१४॥ - [सो.] रोसो वि० जे धन्य उत्तम सूत्र श्रीसर्वज्ञभाषित सिद्धांत तेह भासंत बोलतां आपणा खरपणई वलि साचउ विचार कस्तां केती वारं रोस ऊपजइ । ते रोसइ क्षमानउ कोश भंडार जाणिवङ । ते रीस रूडी इसिङ भाव । उस्सुत्तेण अनइ उत्सूत्र सिद्धान्त, विरुद्ध जे बोलई तेहनी क्षमाइ दोषइ जि कहीइ, विरूईइ जि
१ खरपणवइं. २ वार. .३, सोसा...