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गामना वतनी हता. ए काळे जैन संप्रदायमां चैत्यवासी यतिओनुं प्राबल्य हतुं अने महावीरे प्रबोधेला आकरा संयममार्गनी अपेक्षाए एमनामां ठीक ठीक शिथिलाचार प्रवर्ततो हतो. आथी — द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भावना मेळथी' सद्गुरुनी शोध करता नेमिचन्द्र पाटणमां आव्या तथा त्यां खरतर गच्छना आचार्य जिनपतिसूरि (सं. १२१०-१२७७ )नी चर्या जोई, परम संयमी गुरु तरीके एमना आचारोनुं अवलोकन करी, एमनो उपदेश सांभळीने व्रतो स्वीकार्यां. पछी पोताने वतन पाछा आवीने पोताना पुत्र आंबडने नेमिचन्द्र जिनपतिसूरि पासे लई गया, अने तेमनी पासे पुत्रने महोत्सवपूर्वक दीक्षा अपावी. नेमिचन्द्रना आ पुत्र दीक्षित थया पछी आचार्य जिनेश्वरसूरि (सं. १२४५-१३३१ ) तरीके प्रसिद्ध थया. आ जिनेश्वरसूरिनी दीक्षानुं वर्णन विक्रमना चौदमा शतकमां थयेला कवि सोममूर्तिकृत 'जिनेश्वरसूरि संयमश्री विवाहवर्णन ' ए नामना ३३ कडीना संक्षिप्त काव्यमां छे ( प्रसिद्धः श्री. जिनविजयजी संपादित 'जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्यसंचय 'मां तथा श्री. अगरचंद नाहटा संपादित ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह 'मां ). - षष्टिशतक 'नी गाथाओमां शुद्ध धर्म, मिथ्यात्व, सदाचार, सद्गुरु, कुगुरु आदिनुं स्वरूप कर्ताए मुखपाठे करी शकाय एवी गाथाओमां संक्षेपमां समजाव्यु छे. निरूपणमा जे अभिनिवेश अने शिथिलाचार सामेनो प्रकोप जणाय छे एनुं कारण उपर सूचवी छे तेवी ए समयनी धार्मिक-सामाजिक परिस्थितिमा रहेलं छे. - वळी आ प्रकरणनी रचनामां नेमिचन्द्रथी थोडा ज समय पूर्वे
थई गयेला आचार्य जिनवल्लभसूरि ( स्वर्गवास सं. ११६७ )कृत ‘पिंडविशुद्धि प्रकरण 'वाचन पण एक प्रेरक कारण हतुं. जिनवल्लभसूरि पहेला कूर्चपुरगच्छीय चैत्यवासी जिनेश्वरसूरिना शिष्य हता. पण एक