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________________ १४०. ases' श्रीदुपसह आचार्य युगप्रधान हुसिहं । तेह लगइ भरतक्षेत्रि चारित्र वर्त्तसि । तीणइ सिउं जाणीइ ? निश्चि को को चारित्रीउ गुरु भरत क्षेत्रमाहिं छइ, जि हुं ऊलखतउ नथी ॥ १३९ ॥ [ जि. ] जे जे गुरु दीसहं ते ते समय सिद्धांत तेहनी परीक्षाई 5 न पूजई न पुचई । पुण एक श्रद्दधान आस्ता छइ । किसुं श्रद्दधान ते? दुप्पसहो जाव जं वरणं । जं जउ दुःप्रसहाचार्य लगइ चरण चारित्र थोडउं थोडेरउं होसिइ जि । इसी आस्ता छन् । पुण जुगप्रधान गुरु टाली बीजउ कोई गाढउ सुगुरु दीस नही । इति भावः ।। १३९ ।। [ मे. ] कवि कहइ । हिवडांनइ कालि जे जे गुरु दीस ते ते सिद्धांतनी परीक्षाइं न पहुच । कांई ? आपणपानई सूधा ज्ञाननउ अवबोध नही | अनइ असूधा घणा, सुधा थोडा ते भणी जाणी न सकी ईं । पणि एक वातनी सद्दहणा करिवी । जां दूपसहसूरि तां सीम चारित्र छइ ।। १३९ ॥ S 15 1 'षष्टिशतक प्रकरण [ जि० ] तिणि कारणि ते जुगप्रधान गुरु जाणिवानउ उपाय कहइ । ता एगो जुगपवरो मज्झत्थपणेहिं समयदिट्ठीए । सम्भं परिवो मुत्तृण पवाहहलबोलं ॥ १४० ॥ [सो.] ता एगो० तेह भणी एह भरतक्षेत्रमाहि एक को 20 युगप्रवर युगमाहि उत्कृष्टउ चारित्रीउ मध्यस्थ मन थईन परीक्षिवउ | समय० सिद्धांतनी रीति सम्यग् जोई लेवु । मुत्तण० लोकनउ प्रवाह कलकल ' आमाहरउ, आ ताहरउ गुरु ' इस्याउ लोकनउ प्रवाह १ छेहडइ २ इसिउं ३ पोह
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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