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त्रण बालावबोध सहित
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इहां चोर नइ बंदीना दृष्टांत जाणिवा । जिम चोरु चोरीइं पइसइ अनइ मरिवाइतउ बीहइ नहीं । बंदियाण बंदि झालिवा पइसइ तिम जाणिवउं ॥११८॥
[सो.] जीव उत्तम, मध्यम, अधम त्रिहु प्रकारे हुई । ए वात बिहु गाहे कहइ छइ । . . - [जि.] अथ सुश्रावकि दयावंति मोटा पापव्यापार न करिवा । इसुं कहइ। जे रजधणाईणं कारणभूआ हवंति वावारा। ... ते वि हु अइपावजुआ धन्ना छडुति भवभीया ॥११९॥
[सो.] जे धन्य उत्तम छइं ते जेहे व्यापारे राज्य लाभइ, धना० धान्य समृद्धि मान महत्त्व लाभइ ते वि हु० तेहइ व्यापार अति पापमय' जाणी छांडइ। संसारना दुःखभए बीहते दीक्षा लेई आपणां काज साधइं ॥ ११९॥
[जि.] जे व्यापार राज्यधनादिकहूई कारणभूत हुई, जेह व्यापार हूंता राज्य धन धान्य सुवर्ण रूप्य रत्नादिक ऊपार्जीइं ते वि.5 तेहई व्यापार हु निश्चई अतिपापसंयुक्त हुई। तउ धन्य कृतपुण्य संसार हूंता बीहता ते व्यापार छांडइ ॥ ११९॥
[मे.] जे राज्यधनादिक ऊपार्जिवानइ कारणभूत व्यापार हुइ तेहइ अतिपापयुक्त व्यापार भव संसार हूंता बीहता छांडइं । तेही धन्य जाणिवा ॥ ११९॥
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१ पापमइ.