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or बालrasोध सहित
[ सो.] न मुणंति० जेहमाहि धर्मनउं तत्त्व कहिउं छह तेव्हउं सिद्धांतशास्त्र न जाणइं अनइ जे परमार्थगुणि हित' अनइ अहित वस्तु, रूडउं-विरूउं, पुण्यपाप न जाणई, बालाण० ते बापडा मूर्ख अजाणपणई पाप करतां उपरि मुणिअ० ज्ञाततत्त्वहूइं रोष किम हुई ? 'ए बापडा अजाण धर्म न जाणई, तु सिउं जाणई ? ' इम तेह ऊपर करुणाइ जि आवइ । इम कहइ, 'सुच्चा ते जिअलोए जिणत्रयणं जे नरा न याणंति' इत्यादि ॥ ११७ ॥
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[ जि. ] जे सूर्ष धर्मतत्त्व न जाणई अनई वली परमार्थगुणि करी हितकारीउं सत्थ शास्त्र, अहिअं अहितकारिडं न जाणई। ताज बालाणं तेहां बालकां ऊपर मूर्ष ऊपरि मुणिअतत्ताणं ज्ञाततत्र ० तत्त्वना जाणहार पुरुषहूहूं किसउ रोस ? अपि तु कोई रोस नही । बाल शब्द मूर्ष कहाइ अनई आंचलि धावणउ बालकई कही । तेह भणी जिम बालक तत्त्वातत्त्वविचार न जाणइं, हिल-अहित न जाणई । तेह बालकां ऊपरि डाहीयार लोक रीस न करई ॥ ११७ ॥
[मे.] जे न जाणई धर्मनउं रहस्य अनइ शास्त्र, जे पर आप नई हित नइ अहित, पुण्य नइ प्राप तेहनइ अधिक गुणकारक न जाणई ते बाल मूर्ख ऊपर धर्मना जाणनई रोस क्रिम करिवउ आवइ ? ॥ ११७ ॥
[ सो.] जे आपणउं हित न करइ ते पर रहई किम हितू आ हुसिई ? ए बात कहइ छन् ।
[ जि.] मूर्ख दयावंत न हुई । ए बात स्थापई ।
१ 'हित... न जाणइ' ए पाठने स्थाने बीजी प्रतमां नीचे प्रमाणे छे"हित अनइ अहित न जाणई । अथवा परमप्प इसिइ पाठि आपणपा अनइ परइहूई गुणकारिडं हितु वस्तु अनइ अहित वस्तु, रूडउं- विरूउं पुण्यपाप न जाणई. '
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