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एंबुं जो के ए समयमा नहीतुं, गद्यनुं प्रयोगक्षेत्र सीमित हतुं, तो पण ए सीमित क्षेत्रमा ये थोडाक अलग अलग प्रकारो मळे छे. संस्कृत के प्राकृत ग्रन्थोना अनुवाद के टीकारूप बालावबोधो; अक्षरना रूपना मात्राना अने लयना बंधनथी मुक्त छतां पद्यमां लेवानी बधी छूट भोगवता प्रासयुक्त गद्य-बोली 'मां रचायेलां 'पृथ्वीचंद्रचरित्र' (सं. १४७८) जेवां गद्यकाव्यो के 'सभाशृंगार' जेवा वर्णकसंग्रहो; अज्ञातकर्तृक
कालकाचार्य कथा' (सं. १५५० आसपास)* जेवी, क्वचित् अलंकारप्रचुर अने क्वचित् सहेला रसळता गद्यमां रचायेली कथाओ अने 'कादंबरी कथानक ' (वि.ना १८मा शतकनो पूर्वार्ध)+ जेवा कथासंक्षेपो दार्शनिक चर्चाओ, वादविवादो अने प्रश्नोत्तरीओ; 'औक्तिक ' तरीके ओळखाता, गुजराती द्वारा संस्कृत शीखवा माटेना संख्याबंध व्याकरणग्रन्थो-जेमां संग्रामसिंहकृत 'बालशिक्षा' (सं. १३३६ ) अने कुलमंडनगणिकृत 'मुग्धावबोध औक्तिक ' (सं. १४५०) जेवां भाषाना इतिहासनां सीमाचिह्नोनो समावेश थाय छे—ए जूना गद्यसाहित्यना प्राप्त विविध प्रकारो छे. अत्यारे उपलब्ध थतुं जूनुं गद्य पण एटलं विपुल छे के एनुं प्रकाशन करवामां आवे तो 'बृहत्काव्यदोहन 'ना सुप्रसिद्ध ग्रन्थो जेवडा ओछामां ओछा सो ग्रन्थो तो सहेजे भराय. जो के जुदा जुदा प्राचीन ग्रन्थभंडारो अने संग्रहोमा जे गद्यसाहित्य मारा जोवामां आव्यु छे ए विचारतां मने लागे छे के आ विधानमा संभव अत्युक्तिनो नहि पण अल्पोक्तिनो छे. ___ आ गद्यसाहित्यनो मात्र एक अल्प अंश अत्यार सुधीमां बहार आव्यो छे. गायकवाड्झ ओरियेन्टल सिरीझमां ए ग्रन्थमाळाना आद्य संपादक श्री. चिमनलाल डाह्याभाई दलाले छपावेल 'प्राचीन गुर्जर
* प्रसिद्ध, मारा वडे संपादित, 'प्रस्थान,' फागण-चैत्र, सं. १९८८ + प्रसिद्ध, सं. आचार्य जिनविजयजी, 'पुरातत्त्व,' पुस्तक ५, अंक ४.