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________________ 5 षष्टिशतक प्रकरण मिथ्यात्त्वि करी सहित छ तेहनइं परम उत्सवइ अतिविघ्न करी मानिवा । कांई ? तीहा उत्सवे मिथ्यात्त्वनां कारण घणां हुई । अनइ ते मिथ्यात्वनइ प्रमाणि नरगि जाई । तेह भणी उत्सव विघ्न समान गिणीइं ॥ ८७ ॥ ८८ [सो.] जेहहूइं धर्मनी दृढाई हुइ तेहहूइं देवइ प्रणाम करई । ए बात कहइ छइ । इंदो वि ताण पणमइ हीलंतो निययरिद्धिवित्थारं । मरणं विहु पत्ते सम्मत्तं जे न छडुंति ॥ ८६ ॥ [सो.] इंद्र तेहहूई प्रणाम करइ | हीलतो. आपणी देवन ० राज्यऋद्धिना' विस्तार निंदतउ हूंतउ' । जाणइ ए ऋद्धि' कांई नहीं । ईणी ऋद्धि मोटपण कोई नही । मरणंते वि० मरणांति पहुतइ जे गाढइ संकटि पडिइ' आपणउं सम्यक्त्व न छांडइ, मिथ्यात्त्व न कर ते इंद्रादिक देवइ नमस्करई ॥ ८६ ॥ ५ [ जि. ] निययरिद्भिवित्थारं आपणी लक्ष्मीनउ विस्तार 15हीतर निंदतर हूंत इंद्र तेहां सम्यक्त्वधारक पुरुषहूई प्रणमइ । तेहां केहांहूइं ? मरणांतई पामिइ हूंतइ जे सम्यक्त्व हु निश्च न छांड | ताणेत्यत्र द्वितीयार्थे प्राकृतत्वात् ॥ ८६॥ [मे. ] इंद्रह तींहां पुरुषांनई प्रणाम करइ, आपणी रिद्धिनउ विस्तार अवहेलत हूंतउ । पणि ते जीव केवहा छ ? जे मरणांति २० सम्यक्त्व छांडई नहीं ॥ ८६ ॥ [ सो.] वली एह जि बात कहइ छ । १ 'रिद्धिना. २ ' हूंतउ ' नथी. ३ रिद्धि. ४ ईणइ. ५ पडइ.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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