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________________ . षष्टिशतक प्रकरण ., [मे.] आज्ञाइं करी रहित, क्रोधादिसंयुक्त, आपणी प्रसंसानइ अर्थि धर्म सेवता हूंता कीर्ति पणि न हुइ । धर्म पणि न हुई ॥ ५५ ॥ [सो.] वली उत्सूत्रभाषी ऊपरि बि गाह कहइ छइ । - [जि.] अथ उत्सूत्रभाषी पुरुषनउं स्वरूप कहइ। . 5 [मे.] वली उत्सूत्रभाषी ऊपरि बि गाह कहइ। इअरजणसंसणाए घिट्टा उस्सुत्तभासिए न भयं । ही ही ताण नराणं दुहाई जइ मुणइ जिणनाहो ॥५६॥ [सो.] इअरजण. इतरजन सामान्य अजाण लोक तेहनी प्रशंसा करइं । 'ए भला' इम वषाणइं । तीणइं करी धीरष्ट हुंता ioअभिमानि चड्या उत्सूत्र बोलतां मनमाहि भय न आणइ । भावइ तिस्यां उत्सूत्र प्ररूपई । ही ही० अहाहा ! तेह पुरुष रहइं परलोकि दुर्गति ग्यां हुंतां जे दुःख हुसिइं ते दुःखनुं स्वरूप जिननाथ श्रीसर्वज्ञ जि जाणइ । अनेरउ' को न जाणइ । ति दुःख जिह्वाए केतलीए न बोलाइं ॥५६॥ 15 [जि.] इतर जन सामान्य लोक तेहनी प्रसंसाइं करी हिट्ठा साहंकार आपणपउं मोटा मानइं जे अनइं जेहहूई उस्मुत्तभासिए उत्सूत्रसिद्धांते न कूडउं तेहनउं भाषण बोलिवउं तेह हूतउ भय नही । कूडउं बोलतां जेहहूई पापनउ भय नहीं। ही ही खेदे। तेहे सगर्व तणां उत्सूत्रभाषक नर तणां दुहाई हउणहार दुःख जइ किमइ मुणइ जाणइ 20तउ जिणनाहो श्रीसर्वज्ञदेव जाणइ । दुःखहूई प्रचुरपणातउ अनेरउ छद्मस्थ जाणी न सकइं । जे सगर्व हूंतु उत्सूत्र बोलइ तेहहूइं अनंतां दुःख हुइ । जिम' मरीचिह्इं उत्सूत्र भाषणतउ घणां हूयां ॥५६॥ १ जि. मे. हिट्ठा. २ दुःखनउं. ३ अनेरु.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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