________________
निवेदन वडोदराना म. स. विश्वविद्यालयनी कार्यवाहक सभाए (सीन्डिकेटे) मंजूर करेली योजना अनुसार, आ 'प्राचीन गुर्जर ग्रन्थमाला' शरू थाय छे. प्राचीन गुजराती साहित्यनी अप्रसिद्ध कृतिओनी समीक्षित वाचनाओनुं प्रकाशन सामान्य रीते एमां थशे, परन्तु आ पहेलां छपाई गयेली छतां जेनां शास्त्रीय संपादनो न थयां होय एवी विशिष्ट रचना
ओनी समीक्षित वाचनाओने तथा प्रसिद्ध के अप्रसिद्ध रचनाओमांथी अभ्यासनी दृष्टिए करेला समुच्चयोने पण एमां स्थान रहेशे. प्रत्येक संपादन साथे प्रस्तावना उपरांत ते ते कृतिमां प्रयोजायेला नोंधपात्र शब्दोनो एक कोश आपवामां आवशे, जेमां ए शब्दो उपर व्युत्पत्ति तेम ज अर्थविकासनी दृष्टिए संक्षिप्त टांचणो अपाशे. जूना गुजराती भाषासाहित्यना तुलनात्मक अध्ययनमा उपयोगी थाय ए प्रकारना स्वाध्यायग्रन्थोने पण प्रसंगोपात्त आ ग्रन्थमालामां अवकाश रहेशे. .
. विक्रमना बारमा शतकमां थयेला, अपभ्रंश व्याकरणकार आचार्य हेमचन्द्रना समयथी मांडी ओगणीसमा शतक सुधी जूना गुजराती साहित्यमां रचायेला सेंकडो ग्रन्थो हजी अप्रसिद्ध छे. ए विपुल साहित्यभंडारमाथी पसंद करेली, जुदा जुदा साहित्यप्रकारोनी प्रतिनिधिरूप गद्यपद्यात्मक कृतिओनुं प्रकाशन ते ते कृतिरूपे अगत्यनु होवा उपरांत ते ते साहित्यप्रकारना विकासना अध्ययनमा घणुं उपयोगी छे. __शक सं. ६९९ ( वि. सं. ८३४ )मा ' कुवलयमाला' नामे सुप्रसिद्ध प्राकृत कथा रचनार दाक्षिण्यांक उद्योतनसूरिए गुर्जरोनी भाषानो एक नानो नमूनो टांक्यो छे, पण छेल्लां लगभग साडा. आठसो वर्ष थयां तो