________________
श्रामण्योपनिषद्
तं तउ जत्थ समिदि परिपालणु, तं तउ गुत्ति - त्तयहं णिहाल । तं तउ जहिं अप्पापरु बुज्झिउ, तं तउ जहिं भव-माणु जि उज्झिउ
तं तउ जहिं ससरूव मुणिज्जइ, तं तउ जहिं कम्महं गणु खिज्जइ ।
तं तउ जहिं सुर भत्ति पयासइ, पवयणत्थ भवियणहं पभासइ
जेण तवें केवलु उप्पज्जइ,
सासय सुक्खु णिच्च संपज्जइ ।
तं तउ जहिं णिय रूव पयासइ, सासय परमसुक्खु जहिं भासइ
घत्ता
बारह - विहु तउ वरु दुग्गइ परिहरु तं पूजिज्जइ थिरमणिणा ।
मच्छरु मउ छंडिवि करणई दंडिवि
११३
11411
॥६॥
॥७॥
तं पि धरिज्जइ गउरविणा
11211
ॐ ह्रीं परब्रह्मणे उत्तमतपोधर्मांगाय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।