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प्रशमरति
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परिणामवर्तनाविधिपरापरत्वगुणलक्षण : काल :। सम्यक्त्वज्ञानचारित्रवीर्यशिक्षागुणा जीवा : ॥२१८॥
पुद्गलकर्म शुभं यत्तत्पुण्यमिति जिनशासने दृष्टम्। यदशुभमथ तत्पापमिति भवति सर्वज्ञनिर्दिष्टम् ॥२१९।।
योग : शुद्ध : पुण्यास्रवस्तु पापस्य तद्विपर्यास :। वाक्कायमनोगुप्तिर्निरास्रव : संवरस्तूक्त : ॥२२०॥
संवृततपउपधानात्तु निर्जरा कर्मसन्ततिर्बन्ध :। बन्धवियोगो मोक्षस्त्विति संक्षेपानव पदार्था : ॥२२१॥