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धर्मानुयायिओं की अनेक जाति के इतिहास का गौरव बतलानेवाला है। अतः इस स्थान की रक्षा करना आवश्यक समझ विचारनिमग्न थे कि - दैवयोग से . कनौज पर मुसलमानों का अधिकार होने से राष्ट्रकूट (राठोड) वंशीय राव सीहाजी अपनी सेना को लेकर मारवाड़ की तरफ आ रहे थे। इन्हें योग्य और धर्मप्रतिपालक वीर समझ, भिन्नमाल की दुर्दशा बतलाकर धर्म की रक्षा के लिए उत्तेजना दी। राव सीहाजी ने सहर्ष स्वीकारकर आपका आशीर्वाद प्राप्तकर आगन्तुक भिन्नमाल के महाशयों के साथ राव सींहाजी ने भिन्नमाल पहुंचकर मुसलमानों को भगाकर अपना अधिकार जमाया। इधर आचार्यश्री भी कुछ दिन बाद भिन्नमाल पधारे, उपाध्याय श्री देवप्रभजी जगच्चन्द्रसूरि और श्री देवेन्द्रसूरि आदि को आबु की ओर विहार करवाया, आपकी सम्मति से आबु प्रतिष्ठा महोत्सव पर श्री भुवनचन्द्रसूरि ने इन्हें आचार्य पद दिया और आपकी आज्ञा से इनका १२८३ का चातुर्मास पाटण और ८४ का बीजापुर हुआ। आपका चातुर्मास सांचोर, भिन्नमाल हुआ हो, राव सीहाजी ने अपनी विजय में आपके उपदेश से यहाँ के एक विशाल जैन मन्दिर के जीर्णोद्धार में सहायता और जमीन आदि दी थी जो कि आज वह मन्दिर खण्हर के रूप में अवशिष्ट है। इस तीर्थ का उल्लेख १७४३ में पण्डित शीलविजयजी ने भयभंजन पार्श्वनाथ के नाम से स्वविरचित तीर्थमाला में किया है। भिन्नमाल की विजय में इसी आशय का एक दोहा भी प्रचलित है -
भीनमाल लीथा भडै, सीहै सेल बजाय । दत दीधौ सत संग्रह्यों, ओ जस कदे न जाय ॥
आपका स्वर्गवास १२८४-८५ में यहाँ के आसपास होने का अनुमान किया जा सकता है और आपके पट्टधर श्री जगच्चन्द्रसूरि आदि ने मेवाड तरफ विहारकर मेवाड की राजधानी अघाट (अहड) नगर में मेवाड राणा की ओर से आपको तथा और वादियों के साथ वाद करने में हीरे के समान अभेद्य रहने के कारण 'हीरला' की पदवी प्राप्त हुई थी, विशेष जिज्ञासुओं के गुर्वावली देखनी चाहिए। मु. बागरा (मारवाड)
मुनि कल्याणविजय
१. जैन परम्परा के इतिहास भाग-२ के पृ.५५६ पर १२८४ में संघ के साथ में शत्रुजय की
यात्रा की और अंकेवालिया में चातुर्मास किया उसी चातुर्मास में स्वर्गवास हुआ ऐसा लिखा है।