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१६० सटीकश्रावकप्रज्ञप्याख्यप्रकरणं । सगिहे पोसहसालाए वा तत्थ नवरि गमणं णत्थि । जो इडिपत्तो सो सव्विड्डीए एइ तेण जणस्स आढा होइ आढियाय साहुणो सुपुरिसपरिग्गहणं जइ सो कयसामाइओ एइ ताहे आसहत्थिमाइजणेणय अधिगरणं वडइ ताहेण करेइ कयसामाइएण य पाएहिं आगंतवं तेण ण करेइ आगओ साहुस मीवे करेइ जइ सोसावगो तो ण कोइ उठेइ अह अहाभद्दओ जइपूया कया होउत्ति भणंति ताहे पुवरइयं आसणं कीरइ आयरिया उहिया य अच्छंति तत्थ उहितमणुट्टिते दोसा विभासियव्वा पच्छा सो इड्रिपत्तो सामाइयं करेइ अणेण विहिणा करेमि भंते सामाइयं सावजं जोगं पच्चरकामि दुविहं तिविहेणं जाव णियमं पज्जुवासामित्ति एवं सामाइयं काउं पडिकतो वंदित्ता पुच्छइ सो य किर सामाइयं करेंतो मउडं अवणेइ कुंडलाणि णाममुदं पुप्फतंबोलं पावारगमाइ वा बोसिरइ एसो विही सामाइयस्स"
अत्राह. कयसामइओ सो साहुरेव ता इतरं न किं सव्वं । वजेइ य सावजं तिविहेण वि संभवाभावा ॥२९३॥ कृतसामायिकःअसौ साधुरेव तस्मादित्वरं न किं सर्वम् वर्जयति च सावधं त्रिविधेनापि संभवाभावात्॥२९३॥]
कृतसामायिक प्रतिपन्नसामायिकः सन्नसौ श्रावको वस्तुतः साधुरेव सावद्ययोगनिवृत्तेर्यस्मादेवं तस्मात्साधुवदेवत्वरमल्पकालं न किं किं न सर्व निरवशेष वर्जयति परिहरत्येव सावधं सपा