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________________ १५३ ॥४६॥ इष्टोपनिषद् પરિશિષ્ટ-૨ अन्य ते अन्य, त्यां दुःख, आत्मा आत्माज ते सुखी; आत्मार्थे ज महात्मानी, साधना सर्वतोमुखी ॥४५॥ अज्ञ जे पुद्गलद्रव्ये राचे ते पुद्गलो पछी; तेनो पीछो तजे नांहीं कदी चतुर्गतिमहीं ध्यानमां मग्नता ज्यां त्यां, बाह्य व्यापारशून्यता; ध्यानथी योगी आस्वादे, सच्चिदानंद व्यक्तता । ॥४७॥ कर्म-राशि दहे नित्य, ते आनंद हुताशन; खेद ना पामता योगी, बाह्य दुःखे अचेतन ॥४८॥ अविद्या भेदती ज्योति, परंज्ञानमयी महा; मुमुक्षु मात्र ए पूछे, इच्छे, अनुभवे सदा ॥४९॥ आत्मा ने पुद्गलो जुदां, मात्र आ सार तत्त्वनो अन्य जे काई शास्त्रोक्त, आनो विस्तार ते गणो ॥५०॥ वसन्ततिलका इष्टोपदेश मतिमान भणी यथार्थ, मानापमान समताथी सहे कृतार्थ; निराग्रही वन विषे जनमां वसे वा, पामे अनुप शिवसंपद भव्य तेवा ॥ सद्बोध सद्गुरुतणो जीव जे उपासे, तेने निजात्म थकी पुद्गल भिन्न भासे; स्वानुभवे सहज आत्मस्वरूप राजे, ते सौख्य-धाम परमात्मपदे विराजे ॥५१॥
SR No.022053
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPujyapadswami, Kalyanbodhisuri
PublisherJinshasan Aradhak Trust
Publication Year2010
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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