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|| रत्नसार ॥
(६१)
तथा
च्यार गति मध्ये गमनागमन करै तथा मैथुन संज्ञाइ विषय सेवै ते पोताना रत्नत्रय गुणनें आवरे, ते जीव आत्मा कर्म नें, ए ४ च्यार गति मांहे असाता पामै. परिग्रह संज्ञाई करी कषाय नो कर्म घणो बांधै, तेणे करी संसार नी प्राप्ति घणी थाइ ए रीते ४ च्यार संज्ञाइ करी जीव संसार मांहे दुःख पामै छै. ए ४ च्यार संज्ञा मध्ये साधूजीइ बे २ संज्ञा तो छठै सातमै गुण स्थाने घटाडी. तथा त्रीजी संज्ञा तो नवमै गुण स्थाने गई.
ने चौथी संज्ञा दसमै गुण स्थाने गई. ए ४ च्यार संज्ञानो भावार्थ जाणवो. अनादि निगोद थी जे ऊंचो व्यवहार रासी तथा पंचेंद्रीपणा सुधी पामै छै ते ए ४ च्यार संज्ञा नी मंदताई. तथा ए ४ च्यार नी तीव्रताई पाछो अधोगति जाई है. तथा जीव नें ज्ञान चारित्र बे गुण है, तथा दर्शन गुण ते ज्ञान गुण मध्ये अंतर्भूत है. सामान्यावबोध माटै ते मध्ये ज्ञान गुण नें मते छै. अने चारित्र गुण उपादान रूप छै ते माटे ए उपादान गुण नु ४ च्यार संज्ञानी मंदताइ जीव ऊंचो
थाइ