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॥ रत्नसार ॥ (५९) कहै छैः-नाम जिन नो थानक छै ते जिव्हाग्रे छै. थापना जिन नो थानक चक्षु मांहि है. द्रव्य जिन नो थानक जिन वचन थी, एटले एहनो थानक मनोयोग छै. जे माटै श्रद्धान ते मनोयोग श्रद्धान मध्ये छै. भाव जिन ना थानक हृदय मांहि होय. ए निक्षेपा ना थानक जाणवा.
८८. हिवै पांचेंद्री शेणे भरी छै ते इठ्यासीमो प्रश्नः- द्रव्येंद्री आकार ते मल मूत्र रक्त मांसादि अशुभ पुद्गले भरी छै. अने भावेंद्री ते राग द्वेष विकारें भरी छै.
८९.हिवै ४ च्यार संज्ञानो नव्यासीमो प्रश्नःते ४ च्यार संज्ञानो परमार्थ कहै छै. हिवै तिहां आहार संज्ञाइ तो जीव अनादि नो खातोज रहै छै, कदापि तृप्ति नथी पाम्यो १. अने भय संज्ञा ए ४ च्यारे गति मांहि धूजतोज रहै छै २. अने मैथुन संज्ञाइ पांचेंद्री ना विषयाभिलाषी थको रहै छै३. परिग्रह संज्ञाइ एकठो