________________
॥ रत्नसार ॥
लक्षण जे गुण प्रत्यक्ष दीठो, अनुभवे ते प्रणमन पर्याय रूपै दीठो, स्वरूपै ते अभेद रत्नत्रयात्मक निज पद कंद दीठो. ए रीतें आत्म स्वरूप नो छद्मस्त सम्यक् दृष्टी ने देखवो कहिये छै. अमारै चिंते तो शास्त्रोक्त रीतें पोतानी बुद्धि मांहे एहवो भासै छै. ते केवली व ते सत्य. जे कोई प्राणी सम्यक्त दृष्टी ने आत्म दर्श नथी मानता, श्रद्धा भासन मानै 0 ते ऊपर एटली चर्चा लिखी छै. ए मांही जे. कोई जिन वचन विरुद्ध स्वमत कल्पित होइ तो मिच्छामि दुक्कडं.
___ ७५. जोग ३ तीन ते साधु ने छै, रत्नत्रय रूपै प्रणमै छै ते किम ? ते पिच्योत्तरमो प्रश्न कहै छैःमनयोग तो दर्शन श्रद्धान रूपे छै, जे वस्तु ना निर्धार थी चलै नहीं १. तथा वचनयोग तो ज्ञान भणबो, यथार्थ उपदेश सत्य प्ररूपणा ज्ञान रूपै प्रणमै छै २. तथा काययोग तो षट् काय नी दया रूपै प्रवत्तै छै ३. (जयं चरे जयं चिठे) इत्यादि. इम मुनि ना ३ तीन योग ते रत्न त्रय रूप प्रणम्या छै.