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________________ (२२) ॥ रत्नसार ॥ हजार वरस नोउत्कृष्टै कहयो छै. इति भाव. ३०. हिवै ४ प्रकारे मरण नो तीसमो प्रश्नःजे ४ प्रकार ना मरणै घणा जीव मरै छै. एह भाव. ३१. हिवै जीव ना जे द्रव्य गुण पर्याय छै तेहना घातक कुण छै ते इकतीसमो प्रश्न कहै छै.- अज्ञानपणो ते आत्मद्रव्य नो घाती, मिथ्यात्व ते आत्मगुण घाती, अविरत ते आत्मिक सुख-पर्याय घाती. तथा अज्ञान मिथ्यात्व ते आत्मानो जीवपणो दाबे छ, अविरति. आत्मिक सुख दाबे छै, ए भाव. ___३२.तथा. जीव शुद्ध ज्ञान उपयोगैभाव निर्जरा करै छै; अने वैराग्य भाव उदासीनताये द्रव्यनिर्जरा करै छै. इति द्रव्यभाव निर्जरा स्वरूप जाणवो. ए भाव. ___३३. हिवै इच्छा मूर्छाइ जीव श्युं पुष्ट करै ? ते तेतीसमो प्रश्नः–ते जीव ने पुद्गगल नी इच्छा मुर्छा छै. ए बे करीने जीव श्यु पुष्ट करै ? ते कहै छै
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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