________________
॥ रत्नसार ॥
कर्म काउसग ३. ते मध्ये कषाय काउसगते ४ * प्रकार नो, संसार काउसग ते चार । गति निवारण रूप२, कर्म काउसग ते ८ आठ प्रकार नो जाणवो, आठ कर्म क्षय थी. ___ हिवे जे शुभ क्रिया विधि नी छै ते स्वभाव रूपै प्रणमै तिहां निर्जरा नीपजै. तथा शुभ क्रिया जे प्रविधि नी छै ते बंध रूप प्रणमै, तथा लौकिक यश सौभाग्य रूप प्रणमै, तथा पुण्य रूप प्रणमें ते बन्ध रूप थाइ, जेह थी संसार भ्रमण विशेष नीपजै, एह भाव.
८ अथ जीवने खेद ऊपन्यो किम टलै पाठमो प्रश्नजीव ने खेद निवारवा ने अर्थे पूर्व बंध कर्म संभारिये. जेहवा में पूर्व कर्म बांध्या छै तेहवा उदय श्रावै छै. ते मध्ये केतलायक कर्म प्रदेश वेदे ने वेदीने खैरवै छै. ___ * क्रोध १ मान २ माया ३ लोभ ४ थी निवर्तवो ते कषाय काउसग
। देव १ मनुष्य २ तिर्यच ३ नर्क ४ गती नी इच्छा रहित ते संसार काउसग,
* ज्ञानावरणी १ दरस्नावरणी २ वेदनी ३ मोहनी ४ आयू ५ नाम ६ गौत्र ७ अन्तराय ८ ये आठ कर्म ना क्षय ते कर्म काउसग.