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॥ गाथार्थ ॥
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कर्म थी थयो जे कार्मज कर्मो नो विकार ते कार्मण आठकर्म करी निष्पन्न सर्व शरीरोनो कारणभूत ते कार्मण कहिये. ५.
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* ॥ इति गाथार्थ समाप्तम् ॥
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अध्यात्मगीता ....
आत्मधारा .... .... .... ) रत्नसार .... .... .... " पुस्तक मिलने का ठिकानाः
बाबू चांदमल बालचन्द
रतलाम [मालवा]