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________________ (२४) गाथार्थ ॥ रात्रि में विष कमल-नो संकोच थाय छेते लोक संज्ञा छे, रूख ना उत्तम अंगे चढे वेलो ते प्रण-६: २.४५वें प्रश्न में तीन गाथा : बन्ध अंविरई' इत्यादि आई हैं उन का अर्थ:., कर्म बन्ध अविरति हेतु जाणलो छतो रागद्वेष जाणतो छतो वितीने इच्छतो थको पण विरति करवाने असमर्थ. १. . ए प्राणी असंजत सरखो निदतो थको पाप कर्म ने जीव अजीव नो जाण एने सम्यग दृष्टी प्रबल छे भने मोह ते बलवन्त छे. २. ___ सम्यग् दृष्टी कर सहीतहे ग्रहण करे अल्प शक्ति माटे विर एक व्रतादि १२ व्रत अनुमति मात्र वो देश यति.३० .: २४६ वे प्रश्न में 'छानते' इत्यादि संस्कृत है उस का अर्थः ढांके केवल ज्ञान अने केवल दर्शनं आत्मा नो इणे
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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