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(१८) ॥ गाथार्थ ॥ नही पामवा थी व्यवहार राशि में नहीं प्रवेश थवा थी एहवा भव्य अनंता हे पण मुक्ति ना सुख न पावे. - इसी प्रश्न में 'अच्छि अणंता' इत्यादि गाथा है उस का अर्थः
छे अनंता जीव जेउ नहिं पाम्या त्रासादि परिणाम माटे उपजी रह्या छे चवि रह्या छे वारं वार तिहाना तिहां निगोदमां. ....१९१वे प्रश्न में 'जं अज्जियं' इत्यादि गाथा भाई है उस का अर्थः--
जे उपार्जन कस्यो चारित्र देश उण पूर्व कोडि तके ते कषाय मात्र एतावता लिगारे कसाय करे वे नर जो हे सो मुहूर्त एक में सर्व हारि जाय एतावता कमायो चारित्र सर्व गमावे.
.२१०वें प्रश्न में 'दशाभि' इत्यादि संस्कृत आई है उस का अर्थः--
___ दश हस्ते करी एक वंस, बीस वंसे करी एक निवर्त्तन, पांच से निवर्त्तन रो एक हल.