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दीन अनाथ दुखालो । मांगे भीख फिरे घर घर सुं, कहै मुझ को कोउ पालो ॥ चेतन० ॥४॥ मोह दृष्टि मद मदिरा माती, ताको होत उछालो। पर अवगुण राचे सो अह निस, काग असुचि ज्यों कालो॥चेतन. ॥५॥ ज्ञान दृष्टि मां दोष न एते, करै ज्ञान अजुआलो। चिदानंद घन सुजस बचन रस,सज्जन हृदय पखालो ॥ चेतन ॥ ६ ॥
राग कानडो ॥ .. मारग चलत चलत गात, आनंद घन प्यारे । रहत आनंद भरपूर ॥मा० ॥ ताको सरूप भूप, विहु लोक ते न्यारो । बरषत मुख पर नूर ॥ मा० ॥ १॥ सुमति सखी के संग, नित नित दोरत। कबहुन होत ही दूर। जस विजय कहे सुनोही आनन्द घन, हम तुम मिले हुजूर ॥ मा० ॥ २ ॥