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सखी जाइ बेगी मनावो, कहै चेतन सुन प्यारी॥कंत ॥१॥ धन कन कंचन महल मालिए, पिउ बिन सबाह उजारी। निद्रा जोगलहूं सुख नाही, पिउ वियोग तुन जारी ॥ कंत ॥ २ ॥ तोरे प्रीत पराई दुरजन, अछते दोष पुकारी । घरभंजन को कहन न कीजे, कीजे काज विचारी ॥ कंत • ॥३॥ विभ्रम मोह महा मद बिजुरी, माया रैन अंधेरी। गर्जित अरति लवे रति दादुर, काम की भइ असवारी॥कंत ॥४॥ पिड मिलवे को मुझ मन तलफै, मैं पिउ खिदमतगारी। भुरकी देइ गये पिंउ मुझ कू, न लहे पीर पियारी ॥ कंत० ॥५॥ संदेश सुनि श्राए पिउ उत्तम, भई बहुत मनुहारी। चिदानंद धन सुजस बिनोदें,स्मै रंगअनुसारी॥कंत०॥६॥
॥राग धनाश्री॥ .... परम प्रभु सब जन शब्दें ध्यावे । जब लग अंतर भरम न भांजे, तब लग कोउ न पावै ॥ परम प्रभु० ॥१॥टेक॥ सकल अंस देखै जग जोगी, जो खिनु समता आवे । ममता अंधन देखे याको, चित चहुं