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________________ (२) तैसेही अंशुद्ध निश्चय करके जीव-जनित हैं. ऐसो वोही अशुद्ध निश्चय शुद्ध निश्चय की अपेक्षा करके व्यवहार है. अब हम ने जाना परन्तु हे गुरु साक्षात् शुद्ध निश्चय करके ये राग द्वेष किमके हैं या म्हे पूछा हां. तहां गुरु उत्तर देते हैं कि साक्षात् शुद्ध निश्चय करके स्त्री पुरुष संयोग रहित पुत्र की नाई,भला हलद संयोग बिना, रंग विशेष की नाई,इन राग द्वेष की उत्पत्तिज नहीं, कैसे हम उत्तर देवें. पद. ॥ राग धनाश्री ॥ परम गुरु जैन कहो क्यों होवे । गुरु उपदेश बिना जन मूढा, दर्शन जैन बिंगोवे ॥ परम गुरु जैन कहो क्यों होवे ॥ टेक ॥१॥ कहत कृपानिधि समजल झीले, कर्म मयल जो धावें । बहुल पाप मल अंग न धारे, शुद्ध रूप निज जोवें ॥ परम ॥ २ ॥ स्यादवाद पूरन जो जाने, नय गर्भित जस वाचा । गुन पर्याय द्रव्य जो बूझे, सोई जैन है सांचा ॥ परम० ॥ ३ ॥ क्रिया मूढ
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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