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॥ रत्नसार ॥ (२०१) ताई उत्कृष्ट प्रावै तथाचोक्तं- (सिमति जतीया खलु इहयं व्यवहार राशि मझायो। इति अणाई वणसइमप्साअोतित्तियाचेव ॥ ॥) इति भवन भानु केवली, चरित्रे उक्तं.इम निगोदनो विचार लिख्यो छै. __२६७तथा सिद्ध शिला नो आकार अर्द्ध छत्राकार नो, छत्र नो टोचको नीचै राखै, साबू नो गोलो जिम नीचो राखीइं, ऊपरे समो ने तले टेकरो, एणे आकारे, मध्ये ८ योजन जाडी छै. छेहडे मांखीनि पांख जेहवी पतली, श्वेत सुवर्णमय छै, अढी द्वीप प्रमाणै. इत्यर्थः
२६८.अथ अष्ट महा सिद्धि ना नाम अर्थ सहित छै ते लिखिये छै. प्रथम लघिमा ते शरीर को हलुवापणो थाय. जलपुफ ऊपरे तथा कंटक ऊपरें मुनि चालै पण किलामना न पामै १. बीजी वसत्ता सिद्धि तेह थी सिंह, सर्प, देव, मनुजादिक वश्य थाय२. त्रीजी ईशित्व सिद्धि जहे थी परम ऐश्वर्य पणो पांमी, चक्रवर्ती इंद्रादिक थकी अधिकी ऋद्धी विकुर्वे ३. चोथी प्राक्रम्य सिद्धि ते