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॥.रत्नसार ॥ सर्व भाव अस्ति नास्ति रूपें जे जिम छै तिम जाणै देखै. इति.
२६२. हिवै आचित महा स्कंध जे पुद्गल नो चौदे राज लोक प्रमाण पूरेतेहनो स्वरूप यथा श्रुत लिखिये 2. द्रि प्रदेशी परमाणुया ना स्कंध थी मांडीने असंख्यात प्रदेशिओ स्कंध ते अचित महा स्कंधे लोक पुरण न थाय. अनंता परमाणु नो जे एक स्कंध तेणे पिण लोक पुरण न थाय तो श्युं ? अनंत बादर परमाणु नो एक स्कंध तेहवा अनन्तास्कन्ध मिलै तिवारे अचित महा स्कंध रूप थाइ. ते चोद राज लोक पूरे तेह नी विधि-ते स्कंध विश्रसा परिणामै परणमीने केवल समुदघातनी परे दंड रूप करि पछै दिसि विदिसी विस्तारि खंडूया पुरी चौदराज संपूर्ण फरसी ने पाछो केवल समुदघात नी परे संकली ने स्कंध रूपथाय, ते स्कंध असंख्यात आकाश प्रदेश अवगाही रहै. ते अचित महा स्कंध क्षेत्र आसरी अढी द्वीप माहि करे पण बीजे बाहरले क्षेत्रेभूमि कांई न थाय, जिम