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________________ ॥ रत्नसार ॥ दंडक सूत्र ९८अल्पा बहुत्व नो द्वार छै तेहनी गाथा १९ मी मध्ये ए तनि स्वामी कह्या. इति भावार्थ. १९८.तथा सिद्धान्त आगम मांहि प्रथम क्षयोपशम सम्यक्त पामै,उपशम नो तन्त नहीं.ते श्री जिन भद्र गणी क्षमा श्रमण नी कीधी सम्यक्त पचवीसी मध्ये पहिलो क्षयोपशम सम्यक्त पामै,उपशम नो तन्त नहीं. तथा कर्म ग्रन्थ मध्ये पहलो उपशम समकित पामै. एहवो तन्त कै.त्यार पछी क्षयोपशम सम्यक्त पामै, उपशमनो तन्त नहीं,एहवो प्राचार्य नो मत छै.अथःत्यार पछी काल सीतरी ग्रन्थ मध्ये कालीकाचार्य तीन जुदा कह्या छै. तथा कलंकी थाशै ए अधिकार पण कालसितरी ग्रंथ मध्ये छइ. इत्यर्थ. १९९.अपरं.तत्वार्थ मध्ये इम का छै पृथ्वी,पाणी, अग्नि, वायु, वनस्पति प्रत्येक एतले स्थानकै एकेकी पर्याप्ता निश्रायें असंख्याता अपर्याप्ता होइ, पण सूक्ष्म निगोदिया पर्याप्ता नी निष्ट्राइ अनन्ता अपर्याप्ता
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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