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________________ ॥ रत्नसार ॥ (१४१ ) हार राशि अप्प विसाओ । भव्वाचिते अनंते जे सिद्ध सुहं न पावंति ॥ १ ॥ कुण दृष्टांते कुण नीपरें ? जिम कोइ बाल विधवा स्त्री नीपरें. तें स्त्री ने पुत्र थावा ने सक्ति रूप छै पण भरतार ना योग ने अभावे पुत्र फल न पामै.तिम केतलाइक भव्य जीव है पण सामग्री में श्रभावे नहीं पामै एहवी गाथा पन्नवणा सूत्र नी टीका मध्ये. यतः - ( अथीअणंता जीवा जेहेंन पत्तोत साइ परिणामे | सुज्जतिययंती यंतीयं पूणोवि - तथैव तथेव ॥१॥) इति. १८४. हिवै अध्यात्मसार ग्रंथे तीन प्रकारना जीव का है - भवाभिनंदी ते मिथ्या दृष्टी १ बीजो पुद्गलानंदी ते चौथा पांचमा गुण ठाणावाला सम्यक् दृष्टी २. श्रात्मानंदी ते मुनि ३. इति. १८५. वली एहीज ग्रंथे तीन प्रकारनों वैराग्य कह्यो छै ते एकसौ पिच्चासीमो प्रश्नः - दुख गर्भित मोह गर्भित २ ज्ञान गर्भित ३. वैराग्य एहनो विस्तार १
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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