________________
॥ रत्नसार ॥ (१२५) सुधी अंतरात्मा जाणवो. एड्वो अंतरात्मा औलखै तिवारे परमात्मापणो पामै २.
परमात्मा नुं स्वरूप लिखिये छै. साक्षात् पोतानो स्वरूप देखै, कर्मनी उपाधि रहित ते परमात्मा तेरमे चउदमै गुण ठाणे होवै. तथा सिद्ध जाणवा ए परमात्मा ध्यानयोग्य. अंतरात्मा ध्यावायोग्य. ध्येय परमात्मा, ध्यान ते एकाग्रता. एम त्रण आत्मा नों स्वरूप जाणवो. इति भाव.
१६१. हिवै सद्धहणा, फरसणा, परूपणा कोने होइ ते एक सौ इकसठमो प्रश्नः- सद्धहणा. १ फरसणा ते पालवोर परूपणा३ गोतम स्वामी प्रमुखनी परे १.
हिवै बीजो भेद कहै छै. सद्दहणा १ फरसणार सामान्य साधु उपदेश देवा असमर्थ ने २.
हिवै तीजो भेद लिखिये छ. सद्दहणा १ अनुत्तर वासी देवनें, परूपणा २ फरसणा नहीं ३.