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________________ (११४) ॥ रत्नसार ॥ नियमा अवठ्ठ पुद्गल परिय हो चेव संसारो. १) पुद्गल नां परावर्त पुद्गल परावर्त्त, अप कृष्ट किंच न्यूनो अंई पुद्गल परावर्त्त, अपार्थ पुद्गल परावर्त.. . अथ अंतर्मुहुर्त्तनो प्रमाण.अंतर्मुहूर्त्त अष्ट समयोर्ड घटी द्वयं यावदित्यर्थ. तच्च सम्यक्तोपशमिकं. अत्र क्षेत्र पुद्गल परावर्डे नानाधिकार द्रव्यादिन पुद्गल परावतः इत्युपदेस वंदल्या. . १५७. अथ जाति समरणना केटला भव देखै ते एकसौ सतपनमो प्रश्नः-गाथा-पुत्व भवासो पीछई एक दो तिन्नि जाव नव गंवा । उवरि तस्स असिव श्रो सभाव जाई सरणस्स ॥ १ ॥ चक्का १ असी २ छत्र ३ दंडा ४ अाउदसालाई हुंति चत्तारी चम ५ मणी ६ कांगणी ७ नही ८ सिरि गहे चक्किणोडंति ॥२॥ सेणावई ९ गाहावई १० पुरोहीतओ ११ वुथइ १२ नियय नयरेथीर व्रण राय कुले वेयढे तले गय तुरया १४ ॥ ३ ॥)
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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