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________________ ॥ रत्नसार ॥ (१.५) स्कन्ध रूप गुण बिगति तीव्र मंद तारतम्य भेद परिणमै ते तिहां अशुद्ध अर्थ पर्याय पुद्गल को कहिजे. एक स्कन्ध को व्यय, एक स्कन्ध नो उत्पाद, ध्रुव द्रव्य शास्वत. ३ अथ धर्म द्रव्य किं ? द्रव्य गुण गति जीव पुद्गल नो पर्याय असंख्यात प्रदेशी, लोक प्रमाणे . अखंड षट् गुणी हाणि वृद्धि रूप परिणमवै तिहां शुद्ध पर्याय कहीजे. गति नो उत्पाद, स्थिति नो व्यय, ध्रुव द्रव्य शास्वत, धर्म द्रव्य लोक प्रमाण असंख्यात प्रदेशी, अखंड द्रव्य किं ? आकृति रूप शुद्ध व्यंजन पर्याय धर्म द्रव्य कहीजे. धर्म द्रव्य के शुद्ध अर्थ पर्याय किं ? जिहां आपणै गुणन स्यों षट् गुणी हानि वृद्धि करै तिहां शुद्ध अर्थ पर्याय कहीजे. एवं धर्म द्रव्य. ४ अथ अधर्म द्रव्य किं ? द्रव्य गुण स्थिति लक्षण जीव पुद्गल नो पर्याय, असंख्यात प्रदेशी, लोक प्रमाण, अखंड षट् गुणी हाणि बृद्धि रूप
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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