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॥ रत्नसार ॥ (८१) १११. हिवै जीव ने देवू अने दरिद्रपणो किम टलै ते एकसौ ग्यारमो प्रश्न-जीव अनादिकाल नो रागद्वेष मोहै प्रणमै छै तेणे देवो ने दरिद्रपणुं ए बे वर्धे छै. ते किम टलै ? समकित गुण पामै, रत्नत्रय धर्मे पामे टलै. ते किम ? ते दर्शन गुण प्रगटे द्वेष भाव जीवइ समभाव प्रगटै, ज्ञानगुण प्रगटै पुद्गलादि ऊपर राग भाव मिटीजे, वैराग्य गुण प्रगटै. चारित्र गुण प्रगटै, मोहनों दरिद्र जाइ,चरण ठरण गुण प्रगटै, इम ए गुण प्रगटै, ए दरिद्र जाइ. तथा ए देवो करज (ऋण) टलै ते किम् ? दर्शन गुण जन्म भवनी परंपराइ मिटै.ज्ञान गुणै तो जरा नी वेदना मिटै.चारित्र गुणै मरण भय मिटै, एतले अमर पद पामी सिद्धीवरें. इम दर्शन गुण ज्ञान चारित्र गुणै प्रगटै जन्म जरामरण ना भय ढलै. जिम एक नर लक्ष्मी धन प्रचुर पामै, दारिद्रपणुं अने देवू ए बे टले, तिम रत्नत्रय रूपै धर्म धन प्रगटै. राग द्वेष मोह रूप दरिद्रपणुं जाइ. अने जन्म जरा मरण रूप देवा ना भय टलै. ए भाव.