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________________ (७६) ॥ रत्नसार || आवै ते खपावे. अने बाकी रह्या तेह नो उपशम करै — उपशमात्रै तेह नो नाम क्षयोपशम कहिये. ते क्षयोपशम समकित ना भेद लिखिये है. ॥ दोहा ॥ च्यार खपहिं त्रय उपशमहिं, पंच खय उपशम दोय । षय पट उपशम एक यों, क्षय उपशम त्रिक होय ॥ १ ॥ एह नो भावार्थ लिखिये छै. सात प्रकृति मध्ये ४ च्यार चारित्र मोहनी नी छै, ३ तीन प्रकृति मिथ्यात्व मोहनी नी छै. ते मध्ये ६ छः पहली ते ० वाघण ( वाघिनी ) जेवी छै. एक सम्यक्त मोहनी ते कुतरी ( कुतिया ) सरीखी है. तेह नो विवरो, ए सात प्रकृति जिहां उपशमै तिहां उपशम सम्यक्त कहिये. ए ७ साते प्रकृति सत्ता मांहि थी चय करै तिहां चायक समकित. ए सात मांहिली कांईक खपै, कांई क उपशमै तिहां क्षयोपशम समकित कहिये.
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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