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॥ रत्नसार ॥
१०५. हिवै बीजा गुण स्थानै (सास्वादन ) जिन नाम कर्म सत्ताइ किम न होय ते एकसौ पांचमों प्रश्न है: - ते कर्म ग्रंथ नी अवचूरी मध्ये कयूं छैः यथा (सत्ते अड्यालसयं जाव उवसमुवि जिणुं वयातइय) अस्यार्थः । सत्ताइ कर्मनी प्रकृति १४८, एकसौ अड़तालीस मिथ्यात्व गुणस्थान थी मांडी यावत् इग्यारमा सुधी होइ. पण बीजै त्रीजे गुण स्थाने जिन नाम कर्म बिना १४७ एकसो सैंतालीस प्रकृति सत्ताइ होय ते किम? तेंह ना अभिप्राय कहै छै. चोथे गुण स्थाने क्षयोपशम सम्यक्त छै ते जिन नाम कर्म बांधै ते बांधी ने पाछो पड़े समकित वमै तो ते पहिले गुण स्थानकै आवै, पण बीजे त्रीजै गुण स्थानै नावै. ते माटै मिध्यात्व गुण स्थाने जिहां सुधी उपशम समकित होइ, तिहां सुधी जिन नाम न बांधै. स्तोक काल माटै क्षयोपशम तथा नायक समकित छै ते बांधै . ते पाछौ वमैं ते क्षयोपशम समकित पडतो जिन नाम कर्म बंध वालो पहिले गुण स्थान श्रावै, पण बीजै तीजै नावै. तिहां १४८ कसो