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________________ (७२) ॥ रत्नसार ॥ तिवारे ए सुख रूप ज्ञान चारित्र मई संपूर्ण धर्म पाम्या. ए भाव. १०२. हिवै ३ तीन प्रकार ना कर्म किम छै ते एकसौ बीजुं प्रश्न:-ते कर्म नी वर्गणा छै ते द्रव्य कर्म कहिये. अने ते वर्गणा जिवारे पांच शरीर पणै प्रणमै तिवारे तेह ने नोकर्म कहिये. अशुद्धोपयोग ना राग द्वेष मोह परिणाम ते भाव कर्म. ए भाव. १०३. हिवै एक पद ना श्लोक नी संख्या केतली ते एकसौ त्रीजुं प्रश्नः-द्वादश्चैव कोट्यो लक्षा एयसीति अधिकानि श्चैव । पंचाशदष्टोच सहस्रसं ॥ अठेव ८ सह सचुलसिहि८४ सय १००छक्क साढा ५० एक वीस पयगं थार ॥ एतली एक पदना श्लोक नी संख्या जाणवी ए भाव. १.४. हिवै १४ चउद पूर्व ना जेतला पद छै ते जुदार लिखिये छै ते एकसौ चोथु प्रश्नः-तिहां प्रथम उत्पाद पूर्व ना ११ कोडि पद छै १. बीजुं
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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