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॥ रत्नसार ॥ (६९) नोमो सुख नामै, ते मध्ये. चतुर्विध तुर्याना अंगना नारि नाटक नी विधि संगीत ना ग्रन्थ छै ९. एकेक निधाने एक हजार देवता अधिष्ठायक छै. व्यंतरीक देवता छै, तेह नो आयु एक पल्यापम नु, ए भाव.
९६. हिवै प्रभु जिहां पारणो करै तिहां केतली वृष्टि होइ ते छियाणमो प्रश्नः-ते ऊपर गाथा"श्रद्धे तेरस कोडि उक्कोसच्छ होइ वसुधारा । अद्ध तेरष लषा जंहं नेया होइ वसुधारा.”
९७. हिवै१४ चउद विद्या मोटी छै ते सत्याण मो प्रश्नः-ते विद्याना नाम लिखिये छै. प्रथम नभोगामिनी १.पर शरीर प्रवेसनी२.रूप परिवर्तनी३.स्तंभनी ४.मोहनी ५. स्वर्ण सिद्धि ६. रजत सिद्धि ७.रस सिद्धि ८.बंध मोक्षणी९.शत्रु परायणी १०.वश्य करणी ११. भूतादि दमनी १२.सर्व संपत्करी १३. शिवपदप्रापणी १४. ए १४ चउद मोटी विद्या जाणवी.
९८. हिवै पंच प्रस्थानै आत्मा ते पंच प्रस्थान