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________________ गोपाइ काहित. उपदेशक और मुनिराज कितनाही परिश्रम करें; उपदेश दें पर गोडवाड़ी लोग अपने चिरकालसे पड़े हुए संस्कार अर्थात् परम्परा को छोड़ने में वे अपनी इजत हल्की समझते हैं और जहांतक गोड़वाड़ में भविद्या का साम्राज्य रहेगा वहांतक गोरवाड़ की भोरतों के हाथों में चाहे सोनेके बंगड़ी बाजूबंद क्यों न हो पर गोबर राजा तो उनके शिरके बालोंपर सवारी की मजा कभी नहीं छोडेगा जो कि कितनेक भोले भाले लोंगोंने मुनियों के उपदेश रूपी फंदमें श्राकर के अपनी औरतों को गोबर लाना छुड़वा दिया अर्थात् बड़ेरों की परम्परा को छोड दी पर हाल लकीर के फकीरों की भी कमी नहीं है । क्या गोडवाड़ अपने गौरव पर तनिक भी विचार करेंगे ? इस के अलावा जानने काबिल कइ ऐसी कुरूढियां है कि इस वीसवी शताब्दि के मुधारक जमाना में सिवाय गोडवाड़ के उन का रक्षण पोषण होना मुश्किल है। जरा नमूना के तौर पर देखिये। (१) महाजन एक दुनियां में बड़ी इज्जतदार कोम है उन की बहन बेटियों मैदान के बिच ढोल के डंके पर खुब हाव भाव और लटके के साथ नाच करती है कि जहाँ अनेक प्रकार के लोग खुब टीग टोगी लगा के देखा करते है उस समय उन दर्शकों के कैसे परिणाम रहते होंगे ? समझ में नहीं आता है कि महाजनोंने इस नाच में अपनी कहांतक इजत समझ रखी होगी। अगर कोइ बहनों उपदेशको के सपाट में आ कर नाच से इन्कार
SR No.022036
Book TitleSamavsaran Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Muni
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1929
Total Pages46
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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