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बारह गुण.
भान्तराय (१६) भोगान्तराय (१७) उपभोगान्तराय (१८) वीर्यान्तराय इन अठारादोष विमुक्त हो वह ही देव समझनीतीर्थकर भगवान् १२ गुण संयुक्त होते है.
(१) अशोक वृक्ष (२) पुष्प वृष्टि (३) दिव्वध्वनि (४) चामरयुगल (५) स्वर्ण सिंहासन (६) भामण्डल (७) देवदुंदुभि (८) छत्रत्रय इनको अष्ट महाप्रातिहाय कहते है.
(९) ज्ञानातिय ईसके प्रभावसे लोकालोक के चराचर भावोंको हस्तामलकी माफीक जान सके ।
(१०) वचनातिशय ईसके प्रभावसे उनकी वाणि आर्य श्रनार्य पशु पानी आदि सब पर्षदाएं अपनि २ भाषामें समझ के लाभ उठा सके।
(१५) पूजातिशय-इसके प्रभावसे तीनलोकमें रहे हुवे देव मनुष्य विद्याधरादि सब पुष्पादि उत्तम पदार्थ से तीर्थंकरोंकी पूजा करते है।
(१२) अपायावगमातिशय- इसके प्रभावसे जहां २ श्राप विहार करते हैं वहां २ दौमिक्षादि किसी प्रकार का उपद्रव उत्पात नहीं होता है. तीर्थकरोंके चौंतीस अतिशय
(१) प्रभुके रोम केश नखादि वृद्धि को प्राप्त नहीं होते है। (२) प्रभु का शरीर निरोग रहता है ।