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वालीके वर्तमान.
श्रीमान् यतिवर्य प्रेमसुंदरजी फलोदीवाले और जसवन्तसागरजी मुंडारावाले को सादर आमंत्रण देकर बुलाए थे, आप की शासनसेवा और शांतवृतिने जनता पर अच्छा प्रभाव डाला था. । फाल्गुण शुक्ल ११ को समवसरण में भगवान की स्थापना करने का शुभ मूहुर्त था। जूने मंदिर की मूर्तियों न मिलने पर सर्व धातमय प्राचिन चौबिसियों और पंच तिर्थियों एवं चार प्रतिमाजी को बड़े ही समारोह के साथ स्थापना करके अट्ठाई महोत्सव प्रारंभ कर दिया गया । नौपतखाने और बेंड (अंग्रेजी) वाजोंने इतना गुलसोर मचाया कि एक बाली के जैन जैनेतर तो क्या पर आसपास के गांवों के लोगों को मानों आमन्त्रण ही कर रहे थे जिस के जरिए संख्याबद्ध लोग समवसरण स्थित प्रभु दर्शन कर अपने सरल हृदय की उज्वल भावना से जैनधर्म की जयध्वनी के साथ परमानन्दको प्राप्त हो रहे थे।
___ रात्री समय रोशनाई और भक्ती का इतना तो ठाठ लग रहा था कि विशाल धर्मशाला होनेपर भी लोगों को बैठने को तो क्या पर खडा रहेने के लिए भी जगह नहीं मिलती थी, इस लिए प्रभु दर्शन के लिए बहुत से आगत सज्जनों को कुछ देर बहार ठहरना पडता था.
इस सु अवसर पर श्रीमान् हाकिम साहब आदि राज्य कर्मचारियोंने भी समवसरण के दर्शन कर अपनी उदारता का परिचय दिया था।